बाघल टुडे (ब्यूरो):- 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी की प्रचंड लहर के बीच हिमाचल में चारों सीटों पर 37 हजार 251 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था। ये वे मतदाता थे, जिन्हें न तो मोदी का चेहरा प्रभावित कर पाया और न ही कांग्रेस के उम्मीदवारों में उन्हें कुछ खास रुचि दिखी। कांगड़ा संसदीय सीट पर कांग्रेस और भाजपा के अलावा मैदान में उतरे अन्य राजनीतिक दलों से नोटा का प्रदर्शन बेहतर आंका गया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांगड़ा में 11 हजार 327 वोट नोटा को डले थे, जो कुल मतदान का 1.12 प्रतिशत था। खास बात यह है कि इस चुनाव में बसपा और आईएनडी ने भी अपने प्रत्याशी उतारे थे। इन सब का वोट शेयर नोटा से कम था। भाजपा को 72.02 प्रतिशत और कांग्रेस को 24.59 प्रतिशत वोट मिले थे। गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने 2013 में राजधानी दिल्ली समेत चार राज्यों छत्तीसगढ़, मिजोरम, राजस्थान, मध्य प्रदेश में पहली बार विधानसभा के चुनाव में नोटा का इस्तेमाल किया गया था। चुनाव आयोग ने मतदान जागरूकता को बढ़ाने के लिए यह सुविधा उन मतदाताओं के लिए लागू की थी, जो वोट डालने बूथ तक नहीं आ रहे थे। इसकी वजह मतदाताओं ने किसी भी उम्मीदवार का पसंद न होना बताई थी। इसके बाद देश भर के चुनाव में नोटा का जन्म हुआ। चुनाव आयोग ने 2014 के आम चुनाव में पहली बार नोटा को एक साथ पूरे देश में लागू किया। नोटा लागू होने के बाद आम चुनाव में प्रदेश की चारों सीटों पर 29,155 मतदाताओं ने इसका इस्तेमाल किया था।
इस बार 80 फीसदी मतदान का लक्ष्य
राज्य निर्वाचन विभाग ने इस बार लोकसभा चुनाव में 80 फीसदी मतदान का लक्ष्य तय किया है। बीते चुनाव में प्रदेश 72 फीसदी मतदान का आंकड़ा ही छू पाई थी ।