राजकीय उत्कृष्ट महाविद्यालय अर्की में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आगाज,शोधार्थियों ने पहले दिन प्रस्तुत किए 17 शोधपत्र।

बाघल टुडे (अर्की):- राजकीय उत्कृष्ट महाविद्यालय अर्की में शुक्रवार से दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आगाज हुआ । इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन राजकीय उत्कृष्ट महाविद्यालय अर्की व केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के संयुक्त तत्वावधान में किया जा रहा है। संगोष्ठी समकालीन साहित्य में विविध विमर्श विषय पर आयोजित की जा रही है। समकालीन समय में दलित विमर्श ,स्त्री विमर्श, किन्नर विमर्श और आदिवासी विमर्श को मुख्य रूप से संगोष्ठी के केंद्र में रखा गया है। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्यातिथि केंद्रीय हिंदी संस्थान, दिल्ली केंद्र की क्षेत्रीय निदेशक प्रो.अपर्णा सारस्वत, बीज वक्ता के रूप में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी बिहार से प्रो.राजेंद्र सिंह बड़गूजर व मुख्य वक्ता के रूप में समीक्षक एवम आलोचक डॉ हेमराज कौशिक रहे। कार्यक्रम की शुरूवात सरस्वती वंदना से की गई। प्राचार्या सुनीता शर्मा ने सभी शिक्षाविदों व शोधार्थियों का स्वागत किया। इस संगोष्ठी में देश के प्रतिष्ठित विश्विद्यालय जिनमें जवाहर नेहरू विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय,बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय,दिल्ली विश्विद्यालय व महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय मोतिहारी से आए शोधार्थियों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। संगोष्ठी के पहले दिन दो तकनीकी सत्रों का आयोजन हुआ है,जिसमें लगभग 17 शोध प्रपत्र प्रस्तुत किए गए। डॉ राजन तनवर द्वारा संपादित पुस्तक “हमारे गांव में हमारा क्या है” का भी लोकार्पण भी इस अवसर पर किया गया। यह पुस्तक मूल रूप से डॉ अमित धर्मसिंह की काव्यमय आत्मकथा ” हमारे गांव में हमारा क्या है!” पर लिखे गए लेखों का संपादन डॉ राजन तनवर द्वारा किया गया है। प्राचार्या सुनीता शर्मा ने अपने सम्बोधन में साहित्य की समाज में प्रासंगिकता को रेखाकिंत किया। प्रो राजेंद्र सिंह बड़गूजर ने अपने वक्तव्य में विमर्श को साहित्य का लोकतंत्र मानते हुए कहा कि जो विमर्श में विश्वास नहीं रखता वह लोकतंत्र में भी विश्वास नहीं रखता। डॉ हेमराज कौशिक ने साहित्य और विमर्श को व्याख्यित करते हुए साहित्य किस तरह व्यक्ति और समाज के लिए महत्वपूर्ण है,इस पर अपने विस्तृत विचार व्यक्त किए। प्रो अपर्णा सारस्वत ने अपने वक्तव्य में कहा की वर्तमान समय में स्त्री विमर्श के साथ साथ पुरुष विमर्श पर भी विचार किया जाना चाहिए और विमर्शों से ऊपर उठकर मानवीय मूल्यों को अपनाना चाहिए। प्रथम तकनीकी सत्र में अध्यक्ष रूप में डॉ राजेंद्र वर्मा, प्राचार्य राजकीय महाविद्यालय राजगढ़ रहे। इसके साथ मुख्य वक्ताओं के रूप में डॉ. अमित धर्म सिंह, डॉ सत्यनारायण स्नेही, प्रो वंदना श्रीवास्तव और डॉ वीरेंद्र सिंह शामिल रहे। दूसरे तकनीकी सत्र में डॉ भवानी सिंह अध्यक्ष रूप में शामिल रहे। इस सत्र में रघुवीर सिंह और संदीप कुमार मुख्य वक्ताओं के रूप में शामिल रहे। सभी वक्ताओं ने साहित्य और समकालीन समय में विमर्श की स्थिति, इतिहास की अवधारणा पर अपने विस्तृत विचार प्रस्तुत किए। संगोष्ठी के संयोजक डॉ राजन तनवर ने जानकारी देते हुए बताया कि प्राचार्या सुनीता शर्मा के सहयोग से ही संगोष्ठी का सफल आयोजन संभव हो पाया है।

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